नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है: कथक गुरु शोवना नारायण

9 सितंबर, 2020 कोलकाता : “नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है’’। मैं अपने जीवन के दोनों अलग हिस्से, एक नृत्यांगना और एक सरकारी अफसर दोनों ही मुझे काफी प्रिय था और मुझे दोनों से हीं काफी लगाव था। औपचारिक शिक्षा ग्राहण करने के पहले तीन वर्ष की उम्र में ही मै नृत्य की दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी। मेरे घर में मेरा एक काफी सुंदर लहंगा है, जिसे देख आज भी वह छवि नजरों के सामने आ जाती है कि मैने कितनी कम उम्र में डांस शुरू की थी। श्री सीमेंट एवं प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रुप से आयोजित ‘‘एक मुलकात’’ नामक ऑनलाइन वेबिनार सत्र में कथक गुरु पद्मश्री शोवना नारायण ने देशभर में दर्शकों के सामने अपनी जीवन के इन पुरानी यादों को ताजा किया। वह ‘एहसास महिलाओं’ की तरफ से शिंजिनी कुलकर्णी द्वारा पूछे गये सवाल, आपने एक नृत्यांगना और सरकारी अफसर के बीच के तालमेल को कैसे सुव्यवस्थित किया?” का जवाब दे रही थी।

शोवना का जीवन उपलब्धियों से भरा है। वह कथक गुरु, कोरियोग्राफर, पूर्व सरकारी अधिकारी, लेखक और एक शोधकर्ता भी है। गुरु-शिष्य के बीच परंपरा से संबंधित, शोवना कथक की प्राचीन भारतीय परंपरा की जड़ को लोगों के सामने रखते हुए वह नृत्य शैलियों में क्रॉस-सांस्कृतिक प्रयोग के माध्यम से कथक संस्कृति को बढ़ावा देने एवं इसका विस्तार करने में विश्वास करती है।

कोलकाता की सुप्रसिद्ध सामाजिक संस्था प्रभा खेतान फाउंडेशन हमेशा से भारत और विदेशों में विभिन्न पहलुओं के माध्यम से भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करता आया है। एक मुलकात एक विशेष पहल है जिसके जरिये शोवना नारायण की तरह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभावान एवं गौरवशाली महानुभाओं के साथ जुड़ने एवं उनके विषय में विस्तार से जानने के साथ उनके मार्गदर्शन का प्रयास करता है।

प्रभा खेतान फाउंडेशन के ब्रांडिंग एंड कम्युनिकेशन की प्रमुख सुश्री मनीषा जैन ने कहा: हमे गर्व है कि इस कार्यक्रम के जरिये हमे कथक गुरु शोवना नारायण जैसी प्रतिभावान महिला की मेजबानी करने का सम्मान मिला। हम इस तरह के गौरवशाली हस्तियों के साथ समृद्ध सत्र आयोजित करने की काफी पहले से प्रतीक्षा कर रहे थे।

शोवना नारायण ने अपने कला में नृत्य और दर्शन के तालमेल से कथक को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लोकप्रिय बनाया है। उन्होंने कथक और पश्चिमी शास्त्रीय नृत्य, फ्लेमेंको, टैप डांस, बौद्ध मंत्रों और इतने सारे के साथ कई अंतरराष्ट्रीय सहयोगी कार्यों को सफलतापूर्वक कोरियोग्राफ किया है। 2003 में, उन्होंने ऑलिम्पिक्स के उद्घाटन और समापन समारोहों की कोरियोग्राफी की।

शोवना ने पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, जापान के ओआईएससीए पुरस्कार, बिहार गौरव पुरस्कार और इतने सहित 37 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार का सम्मान पाया हैं।

चर्चा सत्र के दौरान शोवना के शब्दों में, साधना बोस की देखरेख में मैने कलकत्ता में एक बच्चे के रूप में कथक सीखना शुरू किया, फिर मुंबई चली गईं और जयपुर घराने के गुरु कुंदनलाल जी सिसोदिया के अधीन रहीं और बाद में दिल्ली जाकर मैने पंडित बिरजू महाराज से शिक्षा ग्रहण की।

शोवना कहती हैं, मैं गुरुजी बिरजू महाराज की मेरे प्रति कृतज्ञता कभी नहीं भूलूंगी जिन्होंने दिल्ली में अपने प्रदर्शन से पहले मेरे प्रदर्शन की घोषणा की। वह मेरे पहले चरण के प्रदर्शन के लिए लॉन्चिंग पैड था।

कथक की प्राचीनता और ‘‘कथक गांवों’’ पर अनके शोध को दर्शाते हुए शोवना ने कहा कि, लगभग 17 साल पहले वह एक प्रदर्शन के लिए बोधगया में थी। उस समय एक पत्रकार से पहली बार कथक गांव के बारे में पता चला। मुझे दो या तीन ऐसे गांव मिले और बाद में, मेरे एक आईएएस सहयोगी के साथ हमने ‘‘कथक गांवों की खोज’’ करने के लिए अपनी यात्रा शुरू की और ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों गांव तक गए। वहां के लोगों से मिले और आधिकारिक दस्तावेज इकट्ठे किए और इस नृत्य को लेकर गहराई से खोजबीन शुरू की।

प्राचीन कत्थक कितना प्राचीन था, इस पर अपने निष्कर्षों को साझा करते हुए शोवना ने कहा, मिथिला में कामेश्वर अभिलेख के एक एपीग्राफिस्ट द्वारा पुष्टि की गई है कि यह मौर्य काल से ईसा पूर्व की है। प्राकृत और ब्राह्मी लिपि के शिलालेख में वाराणसी के क्षेत्र का कथक का भक्तिपूर्ण नृत्य के रूप में उल्लेख है।

आज हम जो कथक नृत्य देखते हैं, वह कथक समुदाय से बहुत अलग है। आज के खड़े मंदिरों में नृत्य रूपों को दर्शाती मूर्तियां, सबसे अच्छे रूप में लगभग 1000 से 1100 वर्षों के बीच की हैं। गुप्त और मौर्य काल के मंदिर और मूर्तियां कहां हैं जो वास्तुकला और मूर्तियों से बहुत समृद्ध थे! हम भारत के छोटे संग्रहालयों और अभिलेखागार पर ध्यान नहीं देते हैं, जो पुराने जमाने की सूचनाओं का भंडार समेटे हुए है। यहीं पर हमें कत्थक नृत्य के रूप और भाव में निरंतरता को देखना और इसे ढूंढना है।

    

सत्र के अंतिम चरण में शोवना के शब्दों में, मैं अपने आप में विश्वास करती थी और कथक से कभी विचलित नहीं हुई थी। हमने कविताओं, मनोदशाओं और यहां तक कि आंदोलनों के संदर्भ में समानता पाई, लेकिन इनके दृष्टिकोण, क्षेत्र और कला में जोर काफी अलग है। मैं फ्यूजन शब्द के उपयोग के बारे में काफी सावधान हूं जिसका मतलब है कि किसी चीज में विलय करने के लिए अपनी पहचान को खो देना। इसलिए यह नृत्य पुरानी कला एवं नये पैटर्न और लयबद्ध आयामों का एक सुंदर कोलाज है, जिससे मै अपनी अलग पहचान रखती हूं।

 

वेबिनार के जरिये एक मुलाकात श्रृंखला में पूरे भारत और अन्य महाद्वीपों के कलाकार, साधक, सांस्कृतिक अफिसादो, विचारक और लेखक लोगों के साथ जुड़े हुए हैं।